मुसाफिर
मुसाफिर हूँ , मुसाफिर रहने दो,
क्यों छेड़ते हो जनाब हमे दीवाना बनाकर,
मुसाफिर हूँ, मुसाफिर रहने दो।
मुलाकातों से जी भरता नहीं ,
मुक्कम्मल होना तुम चाहती नहीं,
क्या ये मुक्कदर का खेल है,
नहीं , शायद ये रिवाज़ों का दौर है।
मुसाफिर हूँ , मुसाफिर रहने दो।
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ReplyDeleteAwesome poetry
ReplyDeleteNice lines
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