तुम ही हो
तुम ही हो , जो ख्वाबो में आकर,
मेरे ख्वाबो को ज़िंदा कर देती हो,
फिर ख्वाबो से निकल कर सुबह,
धुप सा लिपट जाती हो
तुम ही हो_ _ _तुम ही हो।
तुम्हे भूलने का एहसास मुझे कभी हुआ नहीं,
क्योंकि खुद से कभी मैं जुड़ा नहीं,
जो कुछ भी है मेरे पास ,सिर्फ यादें है,तुम्हरी ,
मैं इन यादों के सहारे ,सफर को काट लूँगा
तुम ही हो ,जो ख्वाबो मे आकर ,
मेरे ख़्वाबों को ज़िंदा कर देती हो।
जब कभी भी एहसास हो ,तुम्हे कुछ भी,
बस इन यादों को कुरेद देना,
बस इन यादों को कुरेद देना,
ताकि मुझे भी एहसास हो जाये ,
कि शाम-ए-महफ़िल मे हम भी शुमार थे
तुम ही हो_ _ _ _ _ _
Comments
Post a Comment